तेजस्वी संगठन- तेजस्वी सरस्वती गुरुकुल धाम
तेजस्वी सरस्वती गुरुकुल धाम
बच्चो के बिगड़ते चरित्र की वजह आज कल के तथाकथित स्कूल और कॉलेज :
माँ-बाप अपने बच्चो को पढ़ाने के उद्देश्य से स्कूल भेजते हैं या कहें तो उनके अज्ञानवश वह उन्हें स्कूल भेजते हैं !! क्योंकि हर चीज़ की प्राप्ति लिए एक निश्चित स्थान होता है! वैसे ही शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल होते हैं! गुरुकुलों का उद्देश्य होता है बच्चों को शिक्षित बनाना जबकि स्कूलों का उद्देश्य होता है सिर्फ उनका व्यवसाय चलाना !! गुरुकुल के शिक्षकों का उद्देश्य बच्चों को पूर्ण रूप से शिक्षित तथा सभ्य बनाना होता है जबकि स्कूलों के तथाकथित शिक्षकों का लक्ष्य होता है सिर्फ मानदेय लेना और अपने मतलब से मतलब रखना !
स्कूलोमे पढने वाले बच्चों मे मा बाप ज्यादा मार्क्स लाने के चक्कर में कोम्पीटीशन खडी करतें हैं जीससे बच्चों का मनोबल छूटती हैं।लघुता ग्रथी से पीड़ित बच्चे अनैतिक मार्ग पर चलके अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने मे सभी संस्कार खतम करदेता है।
मा बाप भी बच्चों को स्कूलों के अलावा कोचिंग क्लासेस ट्युशन क्लासेस मे भेजते हैं जोकी शिक्षा के नाम पर खूली लूट।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में जब तक शिष्यों की शिक्षा सम्पूर्ण नहीं हो जाती तब तक उन्हें मर्यादाओं में और संयम में रहना सिखाया जाता है !
जबकि स्कूलों में आपस में कुछ भी बात-चीत चलती रहती हैं और बारहवीं कक्षा में आते आते ना लड़कों का ब्रम्हचर्य सुरक्षित रह पाता है और ना ही लड़कियों का !
आप यह उम्मीद मत करिये की उनके तथाकथित अध्यापक उनपे ध्यान देंगे, बच्चे चाहें पढ़े या आपस में स्वयंवर रचाते फिरे इन्हे कोई लेना देना नहीं है बस इन्हे टाइम पे मानदेय मिलनी चाहिए क्योंकि यह तथाकथित अध्यापक भी इस ही व्यवस्था से निकले हैं !!
आज किसी भी स्कूल के बारे में पता कर लीजिये, छंटवी कक्षा से बच्चे आपस में Boyfriend-Girlfriend बन रहे हैं, नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं और इन व्यसनों को बढ़ावा दे रहे हैं, शिक्षा के नाम पे परीक्षा की एक रात पहले पढ़ कर Marks ले आते हैं और हम इन्हे शिक्षित समझते हैं!!
या हम शिक्षा का अर्थ सिर्फ इतना ही समझते हैं की बच्चा किताब रट कर परीक्षा में उलटी कर आये और 94% ले ले तो वह शिक्षित बन गया ? हम क्यों विद्यार्थियों की ज़िन्दगी का यह अनमोल समय बर्बाद कर रहे हैं शिक्षा को एक मज़ाक बना कर ? क्या शिक्षा का संस्कारों से कोई लेना देना नहीं है ? क्या बिना संस्कारों वाला मनुष्य जानवरों के तुल्य नहीं है ?
जानवर मजबूर हैं लेकिन हम मानवों के पास तो ना ज्ञान की कमी है और ना सभ्यता-संस्कारों की, फिर हम क्यों शिक्षा को ले कर और विद्यार्थियों को ले कर इतने लापरवाह बन रहे हैं ?
क्या एक आदर्श राष्ट्र का उदहारण यही है की जहाँ की कन्यायें और बालक अपने विद्यार्थी काल में ही एक दुसरे के समीप आ रहे हैं, परिवार की इज़्ज़त मिट्टी में मिला रहे हैं, नशीले पदार्थो में अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण समय गवां रहे हैं? और यह सब बस इसलिए की उन्हें इन चीज़ों को बढ़ावा देने वाला एक माहौल दिया जा रहा है? क्योंकि स्कूलों का मतलब ही यही है की जहाँ लड़का-लड़की आपस में मेल-मिलाप, दोस्ती-यारी करके जीवन व्यतीत करें शिक्षा को महज़ एक मनोरंजन के तौर पे रख के!!
जो चरित्र वान है वह सदा महान है।दअगर चरित्र से गिर जाने के बाद कोई विद्यार्थी Doctor या Engineer बन भी जाये तो एक आदर्श तथा सभ्य समाज में उसकी क्या प्रतिष्ठा रहेगी ? और हम इस शिक्षा पद्दति से बन कर निकले Doctor-Engineer को महत्त्व दें भी क्यों? क्योंकि ये उन बच्चों की तरह हैं जिन्होंने अपने खुद के माँ-बाप को ठुकरा के दूसरों के माँ-बाप की गुलामी कर के अपना जीवन व्यतीत किया है!
स्कूल की व्यवस्था अंग्रेज़ों ने हम पर थोपी थी क्योंकि उनका उद्देश्य था भारत के बच्चे उनकी सभ्यता और मानसिकता के हिसाब से तैयार हों ना की भारतीय सिद्धांतों के हिसाब से जिसमे सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी उस समय के East India Company के क्लर्क मोहन रॉय ने !!
अंग्रेज़ों के जाने के बाद हमे अंग्रेजी व्यवस्थाएं भी इस देश से हटा कर भारतीय व्यवस्थाएं पुनः स्थापित करनी चाहिए थी लेकिन हम कैसे बेवकूफ हैं की आज़ादी मिलने के बाद भी आज अंग्रेजी व्यवस्थाएं इस देश में चला रहे हैं ?
हमे समझना चाहिए की दूसरों की नक़ल करने वाले कभी तरक्की नहीं किया करते !!
अब यह माता पिता को सोचना होगा की हम कैसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं!!
गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों को आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा के साथ संस्कार भी दिए जाते हैं जिस से यह विद्यार्थी कभी गलत मार्ग का अनुसरण नहीं करते और गुरुकुलों के शिक्षकों का पूरा उद्देश्य लोभ से हटा रह कर बस विद्यार्थियों के जीवन निर्माण पर होता है, गुरुकुल में विद्यार्थियों की शिक्षा पूर्ण होने तक वह गुरुकुल में ही अध्यन कर अपना जीवन बनाते हैं और एक आदर्श व्यक्ति बन कर समाज में आते हैं !
याद रखिये बच्चे को जो घर पर संस्कार दिए जाते हैं उनका असर उन बच्चो पर उतना नहीं पड़ता जितना उन्हें संगती से मिल रहे उनके हमउम्र दोस्त-यारों से पड़ता है!!
अब यह माँ बाप को सोचना होगा की वह उनके बच्चों को राष्ट्र का गौरव बनाना चाहते हैं या राष्ट्र के भविष्य का कलंक !
आप अपने बच्चों को गुरुकुल मे पढ़ाई करना चाहते है तो संपर्क करें।
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